वीरनारायण सिंह सम्मान (Veernarayan Singh Samman)
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- स्थापना वर्ष – 2001
- कार्य क्षेत्र – आदिवासी एवं पिछड़े वर्ग के उत्थान कार्य हेतु
- द्वारा (विभाग) – आदिम जाति कल्याण विभाग
- सम्मान राशि – 2 लाख रूपए व प्रशस्त्रि पत्र
- प्रथम प्राप्तकर्ता – आदिवासी शिक्षण समिति
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वीरनारायण सिंह जी, छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, एक सच्चे देशभक्त एवं गरीबों के मसीहा थे। इनका जन्म 1795 में सोनाखान, जिला बलौदा बाजार (वर्तमान) में हुआ था| वीरनारायण सिंह जी सोनाखान के जमींदार थे एवं इनके पूर्वज सारंगढ़ के जमींदार के वंशज थे।
वीरनारायण सिंह अपने घोड़े पर सवार होकर अपने रियासत में भ्रमण करने के दौरान क्षेत्र में नरभक्षी शेर के आतंक का पता चलने पर शेर का शिकार करने चले गए और अपने तलवार से शेर वध कर दिए थे। वीरनारायण सिंह के इस बहादुरी से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें वीर की पदवी से सम्मानित किया गया था।
सन 1856 में अकाल पीड़ित किसानों के अधिकार हेतु इन्होंने सोनाखान विद्रोह किया था, जिसमे वीरनारायण सिंह ने अपने हजारों किसानों को साथ लेकर कसडोल के जमाखोरों के गोदाम पर धावा बोलकर सारे अनाज लूट लिए और अपने प्रजा में बाँट दिए थे|
इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने वीरनारायण सिंह के बहनोई के सहयोग से छलपूर्वक देशद्रोही और लुटेरा का बेबुनियाद आरोप लगाकर उन्हें बंदी बना लिया था। 10 दिसंबर 1857 को रायपुर के चौराहे वर्तमान जयस्तंभ चौक पर बांधकर वीरनारायण सिंह को फांसी दे दी गई थी और फिर उनके शव को तोप से बांधकर उड़ा दिया गया था और इस तरह से भारत के एक सच्चे देशभक्त शहीद हो गए।