छत्तीसगढ़ भूमि

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छत्तीसगढ़ प्रमुख लोकनृत्य

 लोकनृत्य  विशेष
 पंथी नृत्य सतनामी समाज द्वारा प्रस्तुति –

छत्तीसगढ़ में यह नृत्य सतनामी समाज (सतनाम पंथ) का परम्परागत लोकप्रिय नृत्य है| इस नृत्य का प्रमुख विषय सतनाम पंथ के प्रवर्तक गुरु घासीदास का चरित्र होता है| यह नृत्य जैतखाम के चारों ओर गोलाकार रूप में पंथी गायन के साथ किया जाता है| यह एक सामूहिक नृत्य होता है| इसमें पुरुष एवं स्त्रियां दोनों भाग ले सकते हैं|
यह एक द्रुत गति का नृत्य है| आरंभ में यह नृत्य धीमे गति का होता है, परन्तु धीरे-धीरे लय एवं ताल  के साथ नर्तकों की देहगति एवं नृत्य मुद्राएँ तेजी से बदलती है और चरम पर यह नृत्य द्रुत गति से किया जाता है| इस नृत्य में मुख्य वाद्य मांदर एवं झांझ होता है|
 सुआ नृत्य महिलाओं का लोकप्रिय नृत्य –

यह नृत्य छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक लोकप्रिय लोकनृत्य है| यह नृत्य महिलाओं एवं किशोरियों द्वारा किया जाता है| यह नृत्य किसी जाति विशेष तक सिमित नहीं  है, अपितु इनमे सभी जातियों की महिलाएं भाग लेती हैं| सुआ नृत्य कुंआर महीने में किया जाता है| खरीफ फसल तैयार होने के बाद दीपावली के कुछ दिन पूर्व यह नृत्य आरंभ होता है तथा समापन दीपावली की रात्रि में शिव-गौरी विवाह के आयोजन से होता है| इसलिए सुआ नृत्य को “गौरी नृत्य” भी कहा जाता है|
इस नृत्य में महिलाएं टोली बनाकर समीप के गांव में भ्रमण करती हैं और प्रत्येक घर के सामने गोलाकार झुण्ड बनाकर ताली के थाप पर नृत्य करते हुए गीत गाती है| घेरे के मध्य में एक टोकरी लाल कपड़े से ढंककर रखी होती है, जिसमे चारों तरफ धान भरा रहता है तथा मध्य में दो मिट्टी के बने सुआ शिव-गौरी के प्रतिक स्वरूप रखे रहते हैं|
 राउत नृत्य यादव समाज द्वारा प्रस्तुति –

यह नृत्य छत्तीसगढ़ का एक विशिष्ट लोकनृत्य है, जो देश के किसी अन्य राज्य में प्रचलित नहीं है| यह नृत्य छत्तीसगढ़ के राउत (यादव) जातियों द्वारा किया जाता है| इसे “गहिरा नृत्य” के नाम से भी जाना जाता है| ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार श्रीकृष्ण के कंस पर विजय प्राप्ति के बाद यह नृत्य विजय के प्रतीक स्वरूप किया जाता है| यह एक शौर्यपरक नृत्य है, जिसमे श्रृंगार की प्रधानता होती है|
तह नृत्य दीपावली पर्व गोवर्धन पूजा से प्रारंभ होता है और कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है| इस नृत्य में राउत लोग टोलियां बनाकर गाँव/शहरों में घर-घर जाकर धन-देवता का चित्र बनाते हैं तथा पशुओं में सुहई बांधकर उस परिवार के तथा पशुओं के लिए मंगल कामना करते हैं|
यह नृत्य एक पुरुष-प्रधान सामूहिक नृत्य है| नर्तकों की वेशभूषा विविधतापूर्ण तथा आकर्षक होती है| सिर में पगड़ी बांधते हैं, जिसके एक किनारे पर मोर पंख की कलमी सजी होती है| तन पर रंगीन छींटदार सलूखा तथा कमर के नीचे धोती या लोचना पहनते हैं| सीने पर कौड़ियों से सजा वस्त्र तथा कौड़ियों का बाजूबंद बाहों पर बांधते हैं| इस नृत्य में नर्तक लोगों के एक हाथ में लाठी और दूसरे हाथ में ढाल होता है| इस नृत्य के दौरान लाठी, तलवार, भाला, गुरुद इत्यादि अस्त्र-शस्त्रों से सौर्य प्रदर्शन भी किया जाता है| इस नृत्य में गंड़वा वाद्य यत्रों का प्रयोग किया जाता है, जिसमें निशान, मोहरी, टिमकी, गुपुथ प्रमुख होते हैं, जिसे गाड़ा लोगों द्वारा बजाया जाता है|