छत्तीसगढ़ भूमि

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कोरवा जनजाति

  • कोरवा जनजाति, कोल जनजाति की एक शाखा है|
  • भौगोलिक आधार पर इन्हें दो भागों में विभाजित किया गया है| पहला पहाड़ों में रहने वाले पहाड़ी कोरवा और दूसरा मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले दिहाड़ी कोरवा|
  • एक मान्यता के अनुसार पहाड़ी कोरवा अपना जन्म काग भगोड़ा से मानते हैं
  • कोरवा में पुरुष कमीज, बंडी तथा धोती पहनते हैं| महिलाएं प्रायः सफेद साड़ी पहनती है|
  • कोरवा शारब के बेहद शौकीन होते हैं| चावल से बनी शराब “हँड़िया” इनका प्रिय पेय पदार्थ है|
  • बाल विवाह, मंगी विवाह तथा ठुकू विवाह प्रचलित है|  
  • पहाड़ी कोरवाओं में मृतक संस्कार में कुमारी भात नामक क्रियाकर्म होता है|
  • पहाड़ी कोरवा स्थानांतरित कृषि करते हैं, इसी कारण इन्हें बेवासी कोरवा कहते हैं|
  • इनके त्यौहार खेती जुड़े है| नई फसल की पूजा का त्यौहार नवाखानी है| इसके अतिरिक्त करमा, देवारी, सोहराई, होली आदि प्रमुख त्यौहार हैं|
  • कोरवाओं में सिंगरी प्रति 5 वर्ष में एक बार मनाया जाता है| इस अवसर पर महिलाएं भित्ति चित्रांगन करती है|
  • पहाड़ी कोरवाओं का सम्पूर्ण जीवन स्तर अभी भी विकास की अत्यंत प्रारंभिक अवस्था में है| ये अत्यंत सरल जीवन व्यतीत करते हैं|
  • पहाड़ी कोरवा को विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा दिया गया है और उनके विकास के लिए एक अभिकरण का गठन किया गया है, जिसका मुख्यालय जशपुर में हैं|
  • पहाड़ी कोरवा नृत्य शौकीन होते हैं| लोकनृत्य के समय अभी पुरुष हथियार धारण करते हैं तथा ढोलकी के थाप पर नाचते हैं|
  • पहाड़ी कोरवाओं का प्रमुख नृत्य दमनज (नृत्य- भयोत्पादक) है|