छत्तीसगढ़ भूमि

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कोरकू जनजाति

  • यह मुंडा या कोल की एक प्रशाखा है|
  • छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले कोरकू शाब्दिक अर्थ है- मनुष्यों का समूह|
  • इनके आजीविका का साधन कृषि एवं आखेटन है|
  • ये लोग अपना गाँव किसी सुन्दर स्थानों पर बसाते हैं तथा गांव के चारों ओर बांस की बाण लगाते हैं|
  • इनका पहनावा साधारण होता है| स्त्रियां चांदी, पीतल, कांस आदि धातुओं के आभूषण एवं मोतियों की माला पहनती है|
  • मोटे अनाज एवं सब्जियां इनके मुख्य हैं|
  • इस समूह के प्रमुख दो उपवर्ग हैं- राज कोरकू और पठारिया|
  • इनमे घर दामाद (लमझना) प्रथा, विधवा विवाह एवं वधु मूल्य का प्रचलन है|
  • ये स्वयं को हिन्दू (राजपूतों का वंश) मानते हैं|
  • कोरकू जनजाति लोग महादेव एवं चंद्रमा की पूजा करते हैं|
  • डोंगर देव, भटुआ देव इनके प्रमुख देवता हैं|
  • कोरकू लोग गुड़ीपड़वा, आखातीज, दशहरा, दिवाली, और होली जैसे हिन्दू त्यौहार मनाते हैं|
  • इनमे मृतक संस्कार में सिडोली प्रथा प्रचलित है|