छत्तीसगढ़ भूमि

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कमार जनजाति

  • यह गोड़ों की उपजाति है|
  • क्षेत्रीय आधार पर कमार दो समूहो में विभाजित है| एक पहाड़ी पर रहने वाले (पहाड़पटिया) और दूसरा मैदान में रहने वाले (बंधरिजिया)|
  • इनकी भाषा द्रविड़ियन और आर्यन भाषाओं के सम्मिश्रण से बानी जिस पर स्थानीय भाषाओं जैसे उड़िया और हल्बी का पर्याप्त प्रभाव है|
  •  धनुष-बाण और कंधे पर कुल्हाड़ी कमारों की ख़ास पहचान है|
  • कमार बस्ती से अलग जंगल में नदी के तट पर रहते है|
  • कमार समूह में किसी के घर किसी के मृत्यु होने पर दूसरा घर बसा लेते है|
  • कमार जनजाति में पेज विशेष पेय पदार्थ है|
  • इस समूह के स्त्री-पुरुष दोनों शराब का सेवन करते हैं|
  • कमारों में अपहरण विवाह, सेवा विवाह तथा सहपलायन विवाह प्रचलित है|
  • कमार जनजाति आज भी आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं| इनके कृषि पद्धति को दाही या दाहिया कहते हैं|
  • बॉस शिल्प तैयार करना कमार जनजाति का आजीविका का मुख्य स्त्रोत है|
  • कमार अधिकांशतः भूमिहीन हैं| वे  खाद्य संग्रहण द्वारा जीवन निर्वहन करते हैं|
  • कमार बांस के सुन्दर सामान बनाने के लिए विख्यात है|
  • कमार जनजाति आदिम विश्वासों से बंधे होते हैं| इनमे पुनर्जन्म की मान्यता है|
  • कमारों के नृत्यों में “मांदर” प्रमुख वाद्य है|
  • वर्तमान सभ्यता से अपरिचित कमार जनजाति सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध व संपन्न हैं|
  • हरेली, नवाखाई इनके प्रमुख पर्व हैं| हरेली के अवसर पर “गेड़ी” नृत्य करते हैं|